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नेशनल हाईवे जमीन बिक्री पर नया नियम: मालिकों और खरीदारों के लिए बड़ी खबर सावधान

New rules for sale of national highway land

अगर आपकी ज़मीन नेशनल हाईवे (National Highway) या एक्सप्रेसवे के किनारे है और आप उसे बेचना चाहते हैं, तो अब सतर्क हो जाइए। केंद्र सरकार और सड़क परिवहन मंत्रालय ने हाल ही में भूमि अधिग्रहण और नेशनल हाईवे अधिनियम (National Highways Act) से जुड़े कई नए नियम लागू किए हैं। इन बदलावों का असर सीधे जमीन मालिकों, खरीदारों और निवेशकों पर पड़ेगा। खासकर उन लोगों पर जो हाईवे किनारे जमीन को रियल एस्टेट, पेट्रोल पंप, होटल या अन्य व्यवसायिक उपयोग के लिए खरीदते-बेचते हैं।

ये नियम केवल सरकारी अधिग्रहण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अब इसमें पारदर्शिता, समय सीमा और ज़मीन वापस लौटाने जैसे प्रावधान भी शामिल किए गए हैं। तो आइए विस्तार से समझते हैं कि नया नियम क्या है, क्यों लाया गया है और इसका असर जमीन मालिकों पर कैसे पड़ेगा।

नया नियम क्या कहता है?

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने 2025 से जमीन अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया को समयबद्ध कर दिया है। इसके अलावा, नेशनल हाईवे अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों के तहत:

क्यों ज़रूरी था यह बदलाव?

भारत में हाईवे और एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट्स अक्सर भूमि अधिग्रहण में देरी की वजह से अटक जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 60% हाईवे प्रोजेक्ट्स की देरी भूमि अधिग्रहण और क्लियरेंस में होती है। इसका असर न सिर्फ विकास कार्यों पर, बल्कि निवेश और रोज़गार सृजन पर भी पड़ता है।

नई व्यवस्था से:

जमीन बेचने वालों के लिए क्या बदलेगा?

1. ट्रांजैक्शन पर रोक

अगर आपकी ज़मीन हाईवे प्रोजेक्ट के लिए चिन्हित हो गई है और नोटिफिकेशन जारी हो चुका है, तो आप उस जमीन को न तो बेच पाएंगे, न ही उसमें बड़ा निर्माण कर पाएंगे।

2. 5 साल का प्रावधान

यदि सरकार ने आपकी जमीन अधिग्रहित कर ली और 5 साल में उसका उपयोग नहीं हुआ, तो वह जमीन आपको वापस मिल सकती है। यह जमीन मालिकों के लिए राहत की बात है।

3. मुआवज़े का निर्धारण

अब मुआवज़ा तय होगा उस तारीख़ के अनुसार जब अधिग्रहण की अधिसूचना निकली थी। मतलब अगर नोटिफिकेशन 2025 में निकला और आपकी जमीन 2027 में ली गई, तो कीमत 2025 की गिनी जाएगी।

निवेशकों और खरीदारों पर असर

हाईवे किनारे जमीन खरीदना हमेशा से निवेशकों के लिए आकर्षक रहा है। लेकिन अब नए नियम के बाद सावधानी बरतनी होगी।

किन बातों का ध्यान रखें:

तुलना: पुरानी बनाम नई व्यवस्था

पहलूपहले की व्यवस्थानई व्यवस्था (2025 से)
जमीन उपयोग न होने परकोई स्पष्ट प्रावधान नहीं5 साल बाद जमीन वापस मालिक को
अधिग्रहण के बाद ट्रांजैक्शनकई बार लेन-देन होते रहेपूरी तरह प्रतिबंधित
मुआवज़े का निर्धारणकई बार मनमाना तय होता थाअधिसूचना की तारीख़ पर आधारित
पारदर्शितासीमितऑनलाइन पोर्टल से पब्लिक

राज्यों को भी रैंकिंग मिलेगी

सरकार अब राज्यों को Ease of Land Acquisition के आधार पर रैंक करेगी। मतलब जो राज्य तेज और पारदर्शी तरीके से जमीन अधिग्रहण करेंगे, उन्हें बेहतर रैंक मिलेगा। इससे राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी और प्रोजेक्ट्स तेज़ी से पूरे होंगे।

वास्तविक उदाहरण

किन्हें सबसे ज्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है?

बाहरी संदर्भ और आधिकारिक स्रोत

FAQ,s

Q1. अगर मेरी जमीन हाईवे प्रोजेक्ट में आ गई है, तो क्या मैं उसे बेच सकता हूँ?
नहीं, एक बार नोटिफिकेशन जारी हो गया तो आप जमीन न बेच सकते हैं, न ट्रांसफर कर सकते हैं।

Q2. जमीन वापस मिलने का नियम कैसे लागू होगा?
अगर अधिग्रहित जमीन 5 साल तक उपयोग में नहीं आई, तो वह जमीन मूल मालिक को लौटाई जाएगी।

Q3. मुआवज़ा कब तय होगा?
मुआवज़ा अधिसूचना की तारीख़ के बाज़ार मूल्य पर तय होगा।

Q4. क्या निवेशक अभी भी हाईवे किनारे जमीन खरीद सकते हैं?
हाँ, लेकिन खरीदने से पहले यह जांचना ज़रूरी है कि जमीन किसी अधिग्रहण नोटिफिकेशन में शामिल तो नहीं है।

Q5. राज्यों की रैंकिंग क्यों की जा रही है?
ताकि भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता और तेजी आए और हाईवे प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे हो सकें।

निष्कर्ष

नेशनल हाईवे किनारे जमीन बेचने या खरीदने वालों के लिए नए नियम गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं। अब अधिग्रहण प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी, मुआवज़ा तय और स्पष्ट होगा, और जमीन मालिकों को सुरक्षा भी मिलेगी कि अगर उनकी जमीन लंबे समय तक उपयोग में नहीं आई, तो वह उन्हें वापस मिल जाएगी।

जिन लोगों की जमीन हाईवे के करीब है, उन्हें अब हर कदम पर सतर्क रहना होगा। निवेश से पहले स्थानीय प्रशासन से जानकारी लेना और कानूनी सलाह लेना बेहद ज़रूरी है। सही समय पर सही जानकारी लेकर ही आप इस बदलाव को अपने लिए फायदेमंद बना सकते हैं।

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